बिहार में अगला विधानसभा चुनाव होने में अभी करीब डेढ़ साल बाकी है लेकिन इसकी बिसात लोकसभा चुनाव से भी पहले ही बिछने लगी थी. बिहार में सभी 40 सीटों पर एनडीए का कब्जा तो नहीं हो सका लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए अबकी बार 200 पार का नारा बुलंद होने लगा. नीतीश कुमार ने जैसे ही एनडीए का दामन थामा कयासबाजी से शुरू हो गई कि अब अगली डील बिहार को विशेष राज्य के दर्जा के मुद्दे पर होगी. इस बीच केंद्र में नई सरकार का गठन हो गया और मौका केंद्रीय बजट का है तो सवाल है क्या अब वो समय आ गया कि बिहार के लिए दिल्ली से कुछ बड़ा ऑर्डर होने वाला है? क्या बिहार को अब विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा? जैसी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सालों पुरानी ख्वाहिश और मांग है. यकीनन ऐसा होता है कि नीतीश कुमार बिहार के इतिहास की अविस्मरणीय शख्सियत बन जाएंगे.
विशेष राज्य का दर्जा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स का पुराना आधार रहा है. करीब दो दशक से इसके लिए वो आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन उनकी मुराद पूरी नहीं हो सकी. वैसे नीतीश इस बात को भली भांति समझते हैं कि उनकी यह मांग अभी नहीं तो आगे कभी पूरी होगी, इसकी संभावना क्षीण है. लिहाजा उन्हें और पूरे बिहार की जनता तो इस बार हर बार से ज्यादा उम्मीद है. क्योंकि साल 2000 में जब झारखंड अलग राज्य बना तभी से बिहार केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत पर ही गौरव करने लिए बच गया था. बिहार की आर्थिक समृद्धि का आधार उससे छिन गया था. लेकिन यह राजनीतिक मजबूरी थी. पिछड़ेपन, गरीबी और बाढ़ की विभीषिका के चलते राज्य से पलायन एक बार फिर बढ़ने लगा.
कब-कब उठाई विशेष राज्य के दर्जे की मांग?
बिहार में साल 2000 के बाद का ये वो दौर था जब आरजेडी और लालू प्रसाद यादव के मुकाबले राज्य की बड़ी आबादी नीतीश कुमार की राजनीति को पसंद करती थी. उनके विजन में भविष्य के बिहार की नई उम्मीद दिखती थी. तभी नीतीश कुमार ने सुशासन और समृद्धि का नारा दिया. इस लिहाज से 2005 का विधानसभा चुनाव सबसे क्रांतिकारी चुनाव माना जा सकता है. बिहार चुनाव के पर्यवेक्षक केजे राव ने तब राज्य की चुनावी तस्वीर बदल दी. उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल करवाया तो बूथ-बूथ पर रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती करवाई. उन्होंने पगडंडियों पर मोटरसाइकिल से सफर करके गांव-गांव के बूथों का जायजा लिया और वोटिंग के दौरान सुरक्षा व्यवस्थित की. नतीजा- बिहार में सत्ता परिवर्तन. लालू प्रसाद यादव गए और नीतीश कुमार की सत्ता आ गई.
2005 में जब पहली बार सीएम बने नीतीश
मुख्यमंत्री बनने के साथ ही नीतीश कुमार ने आधिकारिक तौर पर विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठाई. उन्होंने विधानसभा में तर्क दिया- झारखंड बनने के बाद बिहार के हिस्से केवल गरीबी और पिछड़ापन आया, लिहाजा राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देकर इसके नुकसान की भरपाई की जा सकती है और विकास की पटरी पर लाया जा सकता है. नीतीश कुमार का ये संबोधन पूरे राज्य में उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार बना. इस मांग के साथ ही वो बिहार के सबसे बड़े नायक कहलाए. प्रदेश की जनता ने ख्वाब देखना शुरू कर दिया कि अगर नीतीश कुमार की मांग मान ली जाती है तो निश्चय ही राज्य का कायापलट हो जाएगा.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब ये मांग उठाई तब केंद्र में यूपीए एक की सरकार थी. डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. बिहार में नीतीश कुमार ने बीजेपी के गठबंधन में सरकार बनाई थी. नीतीश कुमार को इस बात का मलाल रहा कि यूपीए सरकार के दौरान उनकी मांग को अनसुना कर दिया गया.
नीतीश का दूसरा कार्यकाल और विशेष मांग
इसके बाद साल 2010 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नीतीश कुमार को बिहार की बागडोर मिली. अब केंद्र में यूपीए 2 का शासन था. प्रधानमंत्री फिर मनमोहन सिंह ही थे. नीतीश कुमार विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर कायम रहे. नवंबर 2012 में पटना के गांधी मैदान में उन्होंने अपनी मांग की बड़ी मुनादी की. इसके बाद मार्च 2013 में दिल्ली के रामलीला मैदान में उन्होंने अपनी मांग को लेकर केंद्र की मनमोहन सरकार पर हमला भी बोला. उन्होंने आरोप लगाया कि हमारी मांग पर 2007 में ही आर्थिक सुधारों के लिए रघुराम राजन कमेटी बनाई थी, लेकिन 2013 में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद भी केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया.
मोदी सरकार में भी नीतीश ने उठाई है मांग
बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर नीतीश कुमार की शिकायत केवल यूपीए सरकार से ही नहीं रही. साल 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद भी उन्होंने अपनी मांग कई बार दोहराई है. नीतीश कुमार ने शिकायत की थी कि मई 2017 में भी उन्होंने केंद्र सरकार को विशेष राज्य का दर्जा देने के संबंध में पत्र लिखा था. इसके बाद पिछले साल 2023 में बिहार कैबिनेट में विशेष राज्य का दर्जा के लिए बकायदा प्रस्ताव भी पारित किया गया. तब उन्होंने अपने पत्र में केंद्र सरकार से बिहार की जनता के हित को ध्यान में रखते हुए तत्काल विशेष राज्य का दर्जा देने की गुहार लगाई.
तेजस्वी यादव भी नीतीश की मांग के साथ
बिहार विशेष राज्य का दर्जा की मांग ऐसा मुद्दा है, जिसमें नीतीश कुमार अकेले नहीं हैं. वो अगर इस मुहिम के अगुवा हैं तो प्रदेश की सभी राजनीतिक शक्तियां मन-बेमन से उनका समर्थन करने के लिए तैयार हैं. प्रदेश के लिए ये भावुक मुद्दा बन चुका है. पिछले करीब 19 साल से इसकी मांग की जा रही है. बिहार में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू दो बार आरजेडी के साथ सत्ता का गठबंधन कर चुकी है. इस दौरान तेजस्वी और उनकी पूरी पार्टी ने विशेष राज्य के दर्जे का पूरा समर्थन किया है और एकजुटता प्रकट की है. बिहार की बीजेपी ईकाई भी पहले से ही नीतीश की मांग के साथ है.
ऐसे में बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने यह कहकर तंज कसना शुरू कर दिया है कि बिहार अगर किंगमेकर है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र से विशेष राज्य का दर्जा मांगें. उधर बिहार में नेता माहौल बनाने में जुट चुके हैं. हर मंच से विशेष राज्य के दर्जे का राग अलापा जा रहा है. पूरा बिहार मानता है- लोहा गरम है, यही वक्त है बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मांगना चाहिए.